लखनऊ सुपर जाएंट्स की टीम प्ले-ऑफ से आख़िरकार बाहर हो गई. और मुंबई के ख़िलाफ़ जिस अंदाज़ में वो बुरी तरीके से हारे उससे ये लगा कि ये टीम बड़े मुकाबले के दबाव में बिखर गई.
इस टीम के कप्तान यूं तो केएल राहुल थे जो टूर्नामेंट के शुरुआत में अपने साधारण स्ट्राइक रेट के चलते आलोचनाओं का शिकार हुए और बाद में अनफिट होने के चलते टूर्नामेंट से बाहर हुए तो क्रुणाल पंड्या को कप्तानी की ज़िम्मेदारी मिली.
इस टीम के कोच ज़िम्बॉब्वे के पूर्व कप्तान और इंग्लैंड के पूर्व कोच एंडी फ्लावर थे लेकिन सही मायने में देखा जाय तो लखनऊ टीम के मेंटोर गौतम गंभीर ही सबसे बड़ी शख़्सियत के तौर पर देखे गये.
जिस तरह से एक के बाद एक विकेट मुंबई इंडियंस के ख़िलाफ़ रनों का पीछा करते हुए गिर रहे थे, गंभीर के चेहरे के भाव अपने आप में कई बातें कह जाते.
मैच ख़त्म होने के बाद जिस तरह से वो अपने चिर-परिचत गंभीर मुद्रा में टीम के मालिक संजीव गोयंका के साथ बातचीत करते दिखे उससे ऐसा आभास हो रहा था कि अगले सीज़न की तैयारी और उसके लिए होने वाले बदलाव की बात अभी से ही शुरू हो गई.
इस मैच में साउथ अफ्रीका के धाकड़ ओपनर क्विंटन डि कॉक का नहीं खेलना कई जानकारों को हैरान कर गया और जब इस पर सवाल कप्तान पंड्या से पूछे गये तो उन्होंने माना कि ये बेहद मुश्किल फैसला था.
माना ये जा रहा है कि इस बोल्ड फैसले के पीछे गंभीर का बड़ा हाथ था.
लेकिन, पंजाब और हैदराबाद की आईपीएल टीमों के कोच रह चुके टॉम मूडी ने इस फैसले को अजीबोगरीब बताया. 70,29,16 और 28 ये डि कॉक की उन चार पारियों के स्कोर रहे हैं जो इस बार लखनऊ ने आईपीएल में उन्हें मौके दिये.
ऐसे में आप खुद ये अंदाज़ा लगा सकते हैं कि अगर गंभीर जैसे अनुभवी मेंटोर ने ये फ़ैसला कायल मायर को प्लेइंग इलेवन में रखने के लिए किया तो इस पर इतनी बहस क्यों हो रही है.
वेस्ट-इंडीज़ के इस ओपनर ने आईपीएल की शुरुआत तो गरमागरम तरीके से की थी लेकिन आखिरी के 5 मैचों में उनके बल्ले से सिर्फ एक (48 रन बनाम गुजरात टाइटंस) पारी ढंग की रही थी और बाकी के चार मैचों में 18, 2,14,0 का स्कोर रहा था.
लेकिन, क्रिकेट के फ़ैसलों की बजाय गंभीर का मेंटॉर के तौर पर ये सीज़न हमेशा ही कोहली के साथ 'विराट' विवाद के लिए याद किया जायेगा.
जिस तरीक़े से एक पूर्व कप्तान और कोहली का सीनियर होने के बावजूद, गंभीर जिस अंदाज़ में मैच ख़त्म होने के बाद भिड़ते हुए दिखे, वो हैरान करने वाला था.
एक बार तो ये लगा कि जैसे कोहली संयम बनाये रखते हुए गंभीर को अपना पक्ष शांति से समझाने की कोशिश कर रहे हैं.
वैसे भी, मैदान के अंदर जो बातें होती हैं वो खिलाड़ियों के बीच होती हैं और ऐसे में किसी टीम मेंटॉर का किसी विवादास्पद मुद्दे पर खुद से कूदना और उस मामले को और तूल देना शायद उचित व्यवहार नहीं था.
कोहली की भी आलचोना हुई और बीसीसीआई ने दोनों पर जुर्माना भी लगाया.
गंभीर सिर्फ आईपीएल की एक टीम के मेंटॉर ही नहीं बल्कि सांसद भी हैं.
कहते हैं कि अक्सर इंसान की सबसे बड़ी मज़बूती ही उसकी कमज़ोरी बन जाती है. गंभीर के संदर्भ में ये बात शायद ठीक बैठती है.
टीम इंडिया के पूर्व मेंटल कंडीशनिंग कोच पैडी अपटन ने अपनी किताब "द बेयरफ़ुट कोच" लिखा है कि उन्होंने अपना सबसे बेहतरीन और सबसे कम प्रभावशाली काम गंभीर जैसे खिलाड़ी के साथ ही किया.
गंभीर की शख्सियत में ज़बरदस्त विरोधाभास की झलक देखने का दावा करते हुए अपटन ने उन्हें 'निराशावादी' खिलाड़ी बताया है.
लेकिन साथ ही उन्होंने कहा कि गंभीर बेहद दृढ़ निश्चयी किस्म के भी थे जिसके चलते वो 2009 में दुनिया के नंबर 1 टेस्ट बल्लेबाज़ भी बने.
दरअसल, जिस किसी ने भी गंभीर के करियर को नज़दीक से देखा है वो अपटन की इस राय से इत्तेफाक रखेगा कि आप गंभीर को एकदम ब्लैक एंड व्हाइट वाले कैरेक्टर के तौर पर अलग नहीं कर सकते हैं.
जो गंभीर शुरुआती दिनों में अपने सीनियर वीरेंद्र सहवाग के साये में दिल्ली ड्रेसिंग रूम से लेकर टीम इंडिया के ड्रेसिंग रूम में साथ रहे, बाद में उसी सहवाग को मैदान में ग़लत नज़रिये पर दो-टूक खरी-खरी बोलने से नहीं चूके.
जिस तरीक़े से गंभीर को 2007 वन-डे वर्ल्ड कप में नंज़रअंदाज़ करके रॉबिन उथप्पा को कैरेबियाई दौरे पर ले जाया गया तो उन्हें काफ़ी वक्त तक इस बात से तकलीफ़ रही.
लेकिन, सालों बाद जब उथप्पा कोलकाता नाइट राइडर्स में गंभीर की कप्तानी में खेले तो उसे अपने करियर का बेहतरीन दौर भी बताया.
उथप्पा ने तो हाल में ये भी कहा कि गंभीर के कोलाकाता छोड़ने के बाद वो खुद को बेहद अकेला पाते थे.
कोलकाता में जिस किसी ने गंभीर की कप्तानी में खेला वो उनकी लीडरशिप का उतना ही कायल है जितना कि महेंद्र सिंह धोनी और रोहित शर्मा की कप्तानी में खेलने वाले ज़्यादातर खिलाड़ी.
कोहली के साथ कहासुनी वाले घटनाक्रम के दौरान सोशल मीडिया पर क़रीब एक दशक पुराना वो विडियो क्लिप भी वायरल हुआ जहां गंभीर ने अपना 'मैन ऑफ द मैच' का पुरस्कार कोहली को दे दिया था क्योंकि दोनों ने शतक लगाये थे.
और गंभीर को लगा कि युवा खिलाड़ी के लिए वो तोहफा ज्यादा मायने रखता है.
केएल राहुल की कप्तानी पर फ़ैसला
कप्तान के तौर पर कोलकाता को दो बार चैंपियन बनाने में गंभीर को भी थोड़ा वक्त लगा था और लखनऊ जैसी नई टीम को पहले दोनों साल में प्ले-ऑफ तक ले जाना मेंटॉर के तौर पर उनकी भूमिका की सराहना की जानी चाहिए.
अगर गंभीर मेंटॉर के तौर शायद कोई एक तगड़ा फैसला ले सकते थे तो वो था केएल राहुल की कप्तानी पर.
लेकिन, गंभीर को राहुल की शैली से बहुत ज्यादा परेशानी नहीं है और कई मौकों पर वो उनको डिफेंड भी कर चुके हैं.
जब गंभीर खुद से इस सीज़न का आकलन करेंगे तो राहुल के स्ट्राइक रेट और कप्तानी वाले फैसले पर उन्हें एक बोल्ड फ़ैसला लेने की ज़रूरत पड़े.
और कौन जाने कि अगर ऐसा वो करने में कामयाब होते हैं तो 2024 में मेंटॉर के तौर पर लखनऊ को वो ट्रॉफी जिताने का सपना भी पूरा कर पायें.
आखिरकार, धोनी की तरह गंभीर भी दुनिया के उन चुनिंदा खिलाड़ियों में से हैं जिन्होंने आईपीएल ट्रॉफी कप्तान के तौर पर जीती है और खिलाड़ी के तौर पर भी टी20 और वन-डे वर्ल्ड कप के साथ नंबर 1 टेस्ट टीम का भी हिस्सा रहे हैं.
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